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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 11)





"कभी सोचा नहीं था ये सब इतना उलझ जाएगा, ये केस तो हरपल पेचीदा होता जा रहा है।" आदित्य भागते हुए मेघना के पास आया। उसने माथे पर चिलचिलाते पसीने को रुमाल से पोंछते हुए कहा।

"कोई क्लू मिला आदि?" मेघना ने उसको गौर से निहारते हुए पूछा।

"नहीं यार! पर मीडिया यहीं नही रुकी है, लोग अरुण के केवल सस्पेंड किये जाने से खुश नहीं हैं बल्कि वे उसे फांसी दिलवाना चाहते हैं।" आदित्य काफी परेशान नजर आ रहा था, उसका चेहरा फिर से पसीने से तर हो गया।

"व्हाट? समझ नहीं आ रहा है ये सब क्या हो रहा है?" मेघना की चिंता बढ़ने लगी।

"वाकई यार! अब तक कम उलझन थी जो ये लोग इस तरह पीछे पड़ गए। माना कि मैं अरुण के काम करने के तरीके को पसन्द नही करता मगर उसने जो पाप नहीं किये हैं उसके लिए उसकी गर्दन पर कानून का पंजा नहीं कसने दूंगा।" आदित्य का स्वर कठोर होता चला गया, वह बड़ी दृढ़ता से बोला।

"मगर उसकी बेगुनाही का कोई सुबूत नहीं है! हमपर ऊपर से दबाव बनाया जाएगा।"

"मैं हूँ सबूत! हमने और बम स्क्वायड के दोनों मेंबर्स ने अपनी आंखों के सामने उस घटना को देखा है…!"

"हमारी गवाही कोर्ट में नही मानी जाएगा आदि! और बम स्क्वायड के मेम्बर्स का भरोसा नहीं कर सकते, आज के जमाने में कोई भी बदल सकता है!"

"लालच या धमकी से!"

"हाँ! यही तो मैं कह रही हूँ, हमें अरुण को गिरफ्तार करना ही होगा, साथ में उस अदृश्य ताक़त का पता भी लगाना होगा।"

"एक मिनट! तुम्हें ये याद है न!" आदित्य ने अपने फ़ोन से वही इमेज दिखाते हुए कहा जिसमें दो सर्कल के बीच एक स्टार और उसमें फुंफकारता हुआ नाग दिख रहा था। "तुम इसे देखकर ऐसे भागी थी जैसे तुम्हें इसके बारे में कुछ पता हो!"

"मुझे भी यही लगा था मैं हर सम्भावित स्थान पर ढूंढने गई, मगर अफसोस..!"

"हिम्मत मत हारो मेघ! हम बहुत बड़ी मुसीबत में हैं, हो सकता है यह हिंट हमें कोई मदद करे!"

"मैं कोशिश कर रही हूं आदि! तुम्हारे आने से पहले भी यहीं सोच रही थी, तुमने तो टीवी पर मेरा इंटरव्यू देखा ही होगा, सिर चकरा रहा है यार मेरा!"

"मेघ! ये सब अभी हाल के ही दिनों से शुरू हुआ है, हम शुरू से शुरू करें तो शायद कोई न कोई सुराग मिल जायेगा!"

"इसके लिए वक़्त की जरूरत है आदि! और जो भी हमारे साथ यह गेम खेल रहा है वह हमें वक़्त देने के मूड में बिल्कुल नहीं है।"

"गेम? वो मारा! सच अ ग्रेट आईडिया मेघ!" आदित्य उछल पड़ा।

"क्या?" मेघना ने उसे घूरा।

"गेम! देखो गेम्स में कभी-कभी ऐसी चालें चली जाती हैं जिसमें सामने वाला उलझकर रह जाता है और हम मुख्य मकसद से उसका ध्यान भटकाकर आसानी से जीत लेते हैं।" आदित्य उत्साहित होकर बोला।

"तुम कहना क्या चाहते हो आदि! साफ साफ कहो!"

"वो जो कोई भी है वो हमारे साथ गेम खेल रहा है, इसका मतलब ये हुआ कि वो हमारा ध्यान मुख्य मुद्दे से भटकाना चाह रहा है। तो..."

"...तो क्यों न हम भी उसके ही साथ गेम खेलें!" मेघना, आदित्य की बात को पूरा करते हुए मुस्कुराकर बोली।

"हाँ! ताकि उसे यही लगे कि हम उसके जाल में उलझ गए हैं जबकि हम उसे उसके मकसद तक पहुंचने से रोकेंगे!"

"ना केवल रोकेंगे बल्कि ऐसी हालत करेंगे कि दुबारा कोई चाल न चल सके! ताकि उसे भी इस बात का एहसास हो जाये कि कानून के हाथ अभी सिकुड़े नहीं हैं, ये हाथ अब भी लंबे हैं।"

"इसका पता तो उसे तब चलेगा जब कानून उसके हाथों में हथकड़ियां डाल देगा।"

"हमें एक साथ कई काम करने हैं! फिलहाल हम एक दूसरे के अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकते हैं।" मेघना ने उसे मशवरा देते हुए कहा।

"तुम भी ख्याल रखना! हम अब और अधिक असफल नहीं हो सकते।" कहते हुए आदित्य वहां खड़ा हो गया। "हमें अभी उन बाकी के बच्चों को भी ढूंढना है, हम अब किसी को उसका शिकार नहीं होने दे सकते!"

"हमें सतर्क और सजग रहना होगा, शरीर में स्फूर्ति लानी होगी ताकि हम अपने मिशन में कामयाब होयें, इससे पहले कि कमिश्नर यहां कोई और सनकी न भेज दें।"

"फिलहाल एक ही सनकी के कारण खड़ा हुआ बखेड़ा नही सम्भल रहा है!"

"काम इतने हैं कि करने वाले कम पड़ जाएंगे, ऊपर से मानसिक दबाव बढ़ता ही जायेगा, हमें जल्दी से कोई सुराग हासिल करना ही होगा आदि! जीतने के लिये यह बहुत जरूरी है।"

"हमारी सफलता अब सिर्फ पुलिस के ऊपर लगे दाग धोने के लिए नही है मेघ! अगर हम असफल हुए तो ये लोग न जाने क्या कर गुजरेंगे।"

"जानती हूँ! तुम्हें हेडक्वार्टर जाना चाहिए आदि। मुझे अभी दूसरे कई चैक पोस्ट्स का निरीक्षण करना बाकी है।" कहते हुए मेघना उठी और अपनी कैप को पहन लिया।

"उफ्फ्फ! सब इतना उलझ गया है कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि अब दिमाग काम करना ही बंद कर देगा।"

■■■

पियूषा और अनिरुद्ध देहरादून मिलिट्री कैम्प के गंगोत्री कैंटीन में बैठे हुए थे। शाम हो चली थी, सूरज ढलने ही वाला था, उसकी लालिमा धरती पर हर तरफ फैल रही थी। अनि का मुंह बिल्कुल सड़ा हुआ सा था उसने इस तरह से मुँह लटकाया हुआ था जैसे किसी मैय्यत में आया हुआ हो, ठीक इसके विपरीत पियूषा उनके अचानक यहाँ पोस्टिंग हो जाने से हैरान और बहुत अधिक खुश नजर आ रही थी, वह महीनों बाद आर. एम. जी. यानी अपने कर्नल अंकल से मिलने वाली थी, इसके लिए बहुत अधिक उत्सुक थी।

"ले बैठा दिया न यहां! अब और कितना इतवार करना पड़ेगा यार!" अनि बुरी तरह झल्ला रहा था।

"थोड़ा और वैट कर लो अनि! अब तुम्हें कौन सा काम है जो इतने बेचैन हुए जा रहे हो?" पियूषा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए जवाब दिया।

"और तुम सुबह-सुबह जबर्दस्ती टांग के यहाँ लाई हो उसका क्या?"

"थोड़ा और इंतजार कर लो यार! तुम्हारे पापा हैं वो!"

"वही तो पप्पा जी! पप्पा जी हैं तो कितना इतवार करूँ? इतना तो मैं किसी की गर्लफ्रैंड का भी वैट न करता।"

"हे प्लीज! यहां झगड़ा मत कीजिए।" एक वेटर ने उनसे कहा।

"सुना? तुझे कह रहा है।" अनि कपड़े झाड़ते हुए फिर से चेयर पर बैठ गया।

"वो तो मुझे भी पता है कि, किसे बोल रहा है!" पियूषा ने तिरछी नजरों से देखकर मुस्कुराते हुए कहा, अनि सकपकाकर रह गया।

"हाँ! हाँ! तुम्हें तो सब पता ही है मेरी प्यारी दोस्त! मेरे पप्पा जी की दुलारी! मेरे..." अनि पुचकारते हुए बोला। 'चीफ को कोई और आईडिया नही मिला था क्या इस आफत से पीछा छुड़ाने के लिए? कौन से जन्म का बदला ले रहे हो चीफ!' अनि मन ही मन बुदबुदाया।

"हाँ! ठीक है! मैं समझ गई। अब मक्खन मत लगा।" पियूषा ने उसकी बात काटकर मुँह बनाते हुए कहा।

"प्लीज अब यहां कोई और कॉन्वर्जेशन नही! आप दोनों यहां जब से आये हैं तब से बीस बार से ज्यादा बोल चुका हूँ। अच्छा हुआ कि ऊपर से आर्डर आये हुए हैं नही तो…!"

"तुम हमको बाहर फेंक देते? है ना?" अनि ने हँसते हुए कहा। "यही बात है न?"

"तुझे तो मैं ही बाहर फेंक देती हूँ चल!" पियूषा उसका हाथ खींचते हुए खड़ी हुई तभी दरवाजे से एक मुस्कुराता हुआ शख्स अंदर आया, बदन पर फौज की वर्दी थी, नेम प्लेट पर कर्नल आर.एम.जी. लिखा हुआ था। अड़तालीस की उम्र में भी वे नौजवान नजर आ रहे थे, शरीर काफी चुस्त था, छाती हिमालय सी चौड़ी, होंठों पर मनमोहक मुस्कान सजी हुई थी, सिर के बाल अब तक सफेद न हुए थे।

"कर्नल अंकल!" पियूषा छोटी बच्ची की तरह खुशी से उछली, कर्नल लंबे कदमों से उसकी ओर बढ़े, पियूषा दौड़ते हुए उनके गले लग गयी। कर्नल ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया।

'लो हो गया भरत मिलाप! कोई देखेगा तो क्या कहेगा? अब राम जी अपने भरत से मिल लिए, मेरी तो कोई वैल्यू ही नहीं है यार मार्किट में! बेटा-वेटा लगता भी हूँ आपका या पता नही…!' अनि मन ही मन बुदबुदाया।

"कैसी हो मेरी प्यारी बच्ची!" कर्नल ने प्यार से पूछा।

"एकदम फर्स्ट क्लास अंकल! आप बताओ, यहां अचानक कैसे आना हुआ?" पियूषा के चेहरे पर मुस्कान खिली हुई थी, जिसे देखकर अनि बहुत खुश हुआ।

'वैसे चीफ ने बिल्कुल सही इंसान भेजा है, अगर इसे कोई सबसे प्यारा है तो वो मेरे पप्पा जी हैं, और ये मेरे पप्पा जी की प्राण है। मतलब बेटा मैं हूँ और हरदम बेटा-बेटा उसे करते रहते हैं। हद है यार! देख रहे हो न! दुनिया में अगर किसी इंसान पर सबसे ज्यादा जुल्म हुआ है तो वो इंसान बेशक मैं ही होऊंगा।'

"मैं भी एकदम फर्स्ट क्लास! कल ही मुझे बताया गया कि तुम यहाँ आई हो और यहां एक ट्रेनर की आवश्यकता थी सो मैं अपना सामान पैक किया और एक मंथ के लिए यहीं आ गया।" कर्नल चहकते हुए बोले, दोनों खुद में इतने मगन थे कि बाकी सबकुछ भूल गए, तभी अनि जाकर कर्नल के पैरों में लोट गया, यह देखकर वहां मौजूद सभी लोग बहुत हैरान हुए।

"पाए लागूं पप्पा जी!" अनि ने अपने पापा के पैरों को कसकर पकड़ते हुए कहा, लोगों की प्रतिक्रिया देख कर्नल थोड़ा सकुचा गए, उन्होंने अपना पैर छुड़ाने की कोशिश की मगर नाकाम रहें।

"छोड़, छोड़ मेरा पैर!" कर्नल ने अनि की पकड़ से अपना पैर छुड़ाने की कोशिश हुए कहा।

"ऐसे कैसे छोड़ दें पप्पा जी! बस आपके शिराबरबाद के लिए तो हम पूरे दिन यहां बैठे हुए थे।" अनि बेशर्मों जैसे बोला।

"खुश रहो!" कर्नल ने बुझे मन से आशीर्वाद दिया।

"इतना बुझा-बुझा शिराबरबाद का क्या करूँगा पप्पा जी? थोड़ा मुस्कुरा के दीजिये न!" अनि ने दुःखी होने की एक्टिंग करता हुआ बोला।

"सदा सुखी रहो नकारे इंसान!" कर्नल ने अपने क्रोध पर काबू रखने की कोशिश करते हुए कहा। "ये तो मेरी बदकिस्मती है कि तू मेरा बेटा है, शायद मैंने पिछले जन्म में बहुत पाप किये रहे होंगे जिसका फल मुझे इसके रूप में मिला! यहां से चल पियू बेटा! अब मैं तुझे एक पल भी इसके साथ नहीं रहने दूंगा, तुझपर इस नकारे की परछाई तक नहीं पड़नी चाहिए! चलों हम चलते हैं।" कर्नल ने पियूषा के बैग को उठाते हुए कहा।

"मगर अंकल जी..!"

"मैंने कहा न चलो!  पता नहीं कहीं न कहीं मेरे ही संस्कार में कोई कमी रह गयी थी जो यह दिन देखना पड़ रहा है। तुम्हारें कहने पर मैं कई बार माना लेकिन आज तो इसने हद ही कर दिया।" कर्नल की आँखों में आँसू आ गए थे, यह देखकर पियूषा गुस्से से भर गई, उसने सुर्ख लाल आँखों से अनि को घूरा, वह कर्नल का पैर छोड़ जमीन पर पड़ा हुआ किसी बेहया की तरह मुस्कुरा रहा था।

"ठीक है! मैं सोचती थी कभी तो यह सुधर जाएगा मगर बड़ा होने के साथ-साथ यह और भी बिगड़ता जा रहा है। मुझे खुद भी इसके साथ नहीं रुकना अंकल जी, चलिए!" पियूषा, कर्नल के साथ बाहर जाने लगी, अनि के चेहरे पर मुस्कान दुगुनी हो गयी।

"थैंक यू पप्पा जी!" अनि ने खुशी से उछलते हुए कहा।

'मैं तुम्हारी जान खतरे में नहीं डाल सकता पीयू! और मेरी जान तो इस देश की अमानत है, मेरे बाद भी मेरे पप्पा जी के पास उनका बेटा यानी तुम रहोगी ही! मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि मैं वैसा बेटा नहीं बन सका जैसा वे चाहते थे। मगर अब वो आदतें ही मेरा नकाब बन चुकी हैं मैं उन्हें नहीं बदल सकता। आई एम सॉरी पीयू! आई नो मैंने तुम्हें आज बहुत अधिक हर्ट किया है!'

अचानक ही उसकी आँखों में आँसू उतर आए जो आँखों से बाहर निकलकर गालों पर ढुलकने को बेताब हो रहे थे, अनि तेजी से वहां से बाहर निकल गया।

■■■

पुलिस हेडक्वार्टर!

आदित्य आते ही सीधा अपने टेबल पर गया, जाते ही कुर्सी पर पसर गया। वह आज भी बुरी तरह थक चुका था, मगर किसी तरह मानसिक तनाव को कम करने में थोड़ी सफलता हासिल किया था। जाते ही वह फाइल्स को खंगालने लगा, उसने एफ.आई.आर. वाला रजिस्टर भी चेक कर लिया।

"एनी अपडेट?" उसने कंप्यूटर पर काम कर ही एक लड़की से पूछा। लड़की उसे यहां देखकर बुरी तरह चौंकी, दरअसल वह काम में इतना अधिक व्यस्त थी कि उसे आदित्य के आने की खबर ही न हुई।

"मैंने बहुत ट्राय किया सर! मगर इस साइन के बारे में कुछ भी पता न चल सका।" उस लड़की ने सुरीली आवाज में कहा, वह भी पुलिस की वर्दी पहने हुए थी।

"किडनैपिंग केसेस से कोई इन्फॉर्मेशन मिला?" आदित्य ने फिर पूछा। वह अरुण की केबिन की ओर बढ़ता गया।

"नो सर!" उस लड़की ने बिना उसकी कर देखे जवाब दिया। अचानक आदित्य की नजर टेबल पर पड़ी एक बन्द पैकेट पर नजर पड़ी।

"यह क्या है?" आदित्य ने उसे पैकेट दिखाते हुए कहा।

"मुझे नहीं पता सर!" उस लड़की ने सपाट सा उत्तर दिया।

"अरुण तो दो दिनों से गायब है, यह यहां आज ही आया हुआ लग रहा है! देखते हैं यह क्या है?" कुछ सोचते हुए आदित्य ने उस पैकेट को खोल दिया, उसमें एक
नई सी.डी. कैसेट थी, आदित्य ने उसे तुरन्त अपने लैपटॉप में लगाया।

"ओ माई गॉड! ये कैसे पॉसिबल हुआ? शायद इसी वजह से अरुण के मन में वह शक उत्पन्न हुआ! इसका मतलब साफ है कि ये सब भी उनकी ही चाल थी।" आदित्य का मुँह खुला का खुला ही रह गया।

क्रमशः….


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Nov-2021 06:20 PM

बहुत बढ़िया लिखते हैं आप सर

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🤫

01-Nov-2021 01:41 PM

इंटरेस्टिंग है स्टोरी... कहानी के हर किरदार कनेक्ट हो गए

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